Sunday 1 December 2019

End Notes

End Note 1


मेरी आँखें सच में कभी बंद हो जाएंगी। और फिर कभी नहीं खुलेंगी। मैं मरूँगा। अपने अंतिम क्षणों में मेरा पश्चाताप क्या होगा? इस सवाल को हमेशा तो नहीं सोचता, लेकिन कभी-कभी ज़रूर सोचता हूँ।

मैं अपने बहुत सारे इक्कठा किये गए किताबों को नहीं पढ़ सकने का दुःख मनाऊंगा। मैं अपने हार्ड-ड्राइव में अनदेखे फिल्मों को नहीं देखने का शोक मनाऊंगा। मैं ठीक से प्रेम नहीं कर पाया, इस बात से दुखी रहूँगा। मैं कुछ लोगों से बहुत कुछ कहना चाहता था। उनसे ना कह पाने का दुःख रहेगा। मैं सबसे पहले एक क्रिकेटर बनना चाहता था। फिर पत्रकार। बीच में टेबल-टेनिस प्लेयर भी। लेकिन कुछ भी पूरा नहीं चाहता था। अब भी जो भी चाहता हूँ उसे पूरा नहीं चाहता। मैं घर से जब भी निकलता हूँ पूरा नहीं निकलता। मेरा कुछ हिस्सा घर में रह जाता है। जब कोई रिश्ता ख़त्म होता है, तो मेरा कुछ हिस्सा किसी के पास छूट जाता है। मरते वक़्त ये दुःख भी हो सकता है कि मैं पूरा नहीं मरा। मेरे बहुत हिस्से बहुत लोगों के पास ज़िंदा रह जाएंगे। लेकिन इस बात से खुश भी हो सकता हूँ कि मेरे मरने के बाद लोग कुछ दिन तक मुझे याद रखेंगे। फिर वो भूल जाएंगे, जैसे मैं बहुत लोगों को भूल चूका हूँ। भूलना ज़रूरी है, वरना सर-दर्द बहुत बढ़ जाएगा।

मुझे सुसाइड नहीं करना। लेकिन मुझे सुसाइड नोट लिखना पसंद है। हर सुसाइड नोट तब तक के जीवन का सार होता है; एक पड़ाव होता है। और उसके बाद का जीवन एक नया जीवन। 
मैं इस जीवन में बहुत सारे सुसाइड नोट लिखना चाहता हूँ। सुसाइड नोट विराम हैं, मृत्यु पूर्ण विराम।

-10.4.2016
__________

End Note 2


मैं कई दिनों से कुछ महान लिखना चाह रहा था... कुछ ऐसा जिसे पढ़कर तुम धन्य हो जाओ। कुछ ऐसा जो तुम्हारे सामने मुझे फिर से महान बना दे - लेकिन मैं ऐसा ना कुछ लिख पाया, ना कह पाया।

लेकिन मैं लगातार महान लोगों से मिलता रहा। सच बताऊँ तो उनसे मिलकर मैं धन्य नहीं हो पाया। वो भी लगातार, अनवरत कोशिश कर रहे थे कुछ महान कहने की... कुछ अद्भुत सा कर देने की। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उनकी महानता के बीच भी चावल-दाल के दाम में कोई बदलाव नहीं आया। वो महान बने रहे, लेकिन मेरे ऑटो के भाड़े में कोई फर्क नहीं आया। उनकी महानता के किस्से सुनकर भी ऑटो 18 रुपये से ही डाउन हुआ। ओला और उबर में सर्ज प्राइस आता रहा।

दुनिया की सभी महान कहानियों को सुनकर भी कहीं कुछ नहीं बदला। मुझे कभी-कभी लगता कि इतनी महानता के बीच मैं भी सिर्फ कुछ बोल कर निकल लूँगा। लेकिन जब-जब मैंने कुछ बोलने भर की कोशिश की, मुझे एक झूठ की दुर्गन्ध सुनाई दी। महानता का झूठ कितना बड़ा है! महानता के ठीक बीचोबीच किसी को ये दुर्गन्ध सुनाई नहीं दे रही। क्योंकि दुर्गन्ध की आदत हो गयी है।

हमारे सभी धर्मों में भगवान लगातार महान हैं। मरने के बाद सभी राजनेता महान हैं। हमारे दादा, परदादा, पिता, बड़े भाई, माँ - सभी लगातार महानता का चोला ओढ़े हुए रहते हैं। और इस सभी महानता के बीच मुझे महान होना सबसे आम नज़र आया। क्या ऐसा हो सकता है कि मैं और तुम वैसे मिलें जैसे की हमें मिलना था? आम होकर। अपनी बहुत सारी कमियों के साथ जीना आसान नहीं होता क्या? महानता के बोझ से दब कर हमारी दोस्ती दम तोड़ देगी।

राम के ऊपर महान होने का इतना बोझ था कि सीता को छोड़ना पड़ा। क्या हमारे समय में ऐसा राम नहीं आएगा जो सीता के साथ सिर्फ इसलिए खड़ा रहे कि वो उससे प्यार करता है? महान होने का मूल्य अगर अपने प्रेम को खोना है तो ऐसी महानता किस काम की?

काश हमारे आदर्श कम महान लोग होते तो शायद ये दुनिया जीने की लिए और बेहतर हो जाती।

6.9.2019
__________

End Note 3


मैं पाश की कविता को कई-कई दिनों तक दोहराता हूँ- 'मैं अब विदा लेता हूँ'...

किसी नए व्यक्ति से मिलता हूँ, और जब हमारे पास बात करने को कुछ नहीं होता, तो मैं उस खाली समय में पूछता हूँ, "क्या तुमने पाश की कविता पढ़ी है?"

"कौन सी कविता?"

"अब विदा लेता हूँ।"

"नहीं। ये तो नहीं पढ़ी।"

"ओह। मैं पढ़ दूँ?"

"हाँ..."

और मुझे नहीं पता मैंने कितने लोगों को ये कविता सुनाई है। कई लोग तो कविता सुनना पसंद भी नहीं करते। और ये एक बेहद लंबी कविता है। इस कविता के ख़त्म होते तक उनकी कॉफी भी ख़त्म हो जाती थी। गले तक जीवन से भरी हुई कविता।

मुझे हमेशा लगता कि मैंने एक नाटक ख़त्म किया है। मेरे लिए इस कविता को पढ़ना एक परफॉर्मेन्स होता। और मैं कोशिश करता बेहद ईमानदारी से इसे पढूँ। बिना किसी झूठ के। हम कई बार अपने झूठे समझ से परफॉर्म कर रहे होते हैं, कि सामने वाला रो दे। या हँस-हँस के पागल हो जाए। जो जैसा है उसको वैसा नहीं कर पाते।

और मैं कई बार दुखी हुआ हूँ जब सामने वाले ने औपचारिक तारीफ़ के बाद बोला है, "कितना डिप्रेस्ड था पाश। Suicidal है ये कविता।"

मैंने ज़िन्दगी, प्रेम और संघर्ष की इससे खूबसूरत कविता नहीं पढ़ी है। इस कविता में पाश जीना चाहता है। कितना आसान है ज़िन्दगी की चाहत रखने वाले इंसान को suicidal बोल देना? ज़िन्दगी का समूचापन एक अंत तो मांगता है। लेकिन एक कवि का अंत कवि decide करता है। और वो कई सदियों तक अपनी कविता में ज़िंदा भी रह सकता है। ये अमर होने की प्रक्रिया है जो किसी और के पास नहीं है - सिर्फ एक लेखक, एक कवि के पास है।

हमें हर कहानी का अंत चाहिए। एक बेहद romantic आदमी अंत में विश्वास नहीं रखता होगा शायद। क्योंकि अंत तो real है। लेकिन हम सभी को सभी कहानियों में अंत ढूंढना है। वरना हमारे समझ की arc अधूरी रह जाएगी।

अब विदा लेता हूँ
मेरी दोस्त, मैं अब विदा लेता हूँ
मैंने एक कविता लिखनी चाही थी
सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं
-----
उस कविता में
तेरे लिए
मेरे लिए
और ज़िन्दगी के सभी रिश्तों के लिए बहुत कुछ होना था मेरी दोस्त
लेकिन बहुत ही बेस्वाद है
दुनिया के इस उलझे हुए नक़्शे से निपटना
-----
तुम्हें
मेरे आँगन में मेरा बच्चा खिला सकने की तुम्हारी ख़्वाहिश को
और युद्ध के समूचेपन को
एक ही कतार में खड़ा करना मेरे लिए संभव नहीं हुआ
और अब मैं विदा लेता हूँ
-----
तू यह सभी भूल जाना मेरी दोस्त
सिवा इसके कि मुझे जीने की बहुत इच्छा थी
कि मैं गले तक ज़िन्दगी में डूबना चाहता था
मेरे भी हिस्से का जी लेना
मेरी दोस्त मेरे भी हिस्से का जी लेना...

18.9.2019
__________

End Note 4


मैंने पाया है कि हम सब एक आदत से बंधे हुए हैं। ना चाहते हुए भी हमारी आदतें हमारे साथ ही रहती हैं। जैसे कि ऑफिस जाने की आदत। अगर हमसे ये आदत छीन ली जाए तो अचानक से सबकुछ निरर्थक लगने लगेगा।

शुरुआत में शायद लगे कि वाह! सब कितना बढ़िया है। मैं यही तो करना चाहता था! जीवन जीना इसे ही तो कहते हैं। लेकिन हमारे अंदर का control freak तुरंत से सबकुछ एक ढांचे में चाहेगा। सब कुछ का एक schedule होना चाहिए - कुछ ना करने का एक बेहतरीन schedule हम तुरंत से बना लेंगे। हम इंसान हैं। हमें सभी चीजों पर अपना control चाहिए - दोस्त पर, ऑफिस में, शहर में, देश पर, धरती पर... चाँद और मंगल पर।

ये जानते हुए कि इन सबका कुछ खास मतलब नहीं है, हम लगातार एक रेस का हिस्सा हैं। बिन दौड़े हम जी नहीं सकते। दौड़ना हमारी आदत है। जैसे ही एक इंसान इस दौड़ में थोड़ा सा भी सुस्ताने लगता है, पूरी इंसानी civilisation उसको दौड़ने के लिए उकसाती है। एक तंत्र तैयार है आपको दौड़ाने के लिए - loan, EMI, दोस्तों की सफ़लता, कुछ साबित करने की होड़...

इस दौड़ से थोड़ा वक्त भर निकाल लेना भी क्रांति है। लेकिन सभी क्रांतिकारी एक अलग दौड़ का हिस्सा बन गए, धीरे-धीरे...

18.9.2019
__________

End Note 5


इस घर को छोड़ कर जा रहा हूँ। करीब ढाई साल रहा। बम्बई का पहला घर। अब कहीं और जा रहा हूँ।

'Home' सिर्फ आपके Uber, Ola, Swiggy, Zomato या Amazon में लिखा address नहीं होता। घर एक स्पेस देता है 'मैं' होने का। ये घर कोई इंसान भी हो सकता है, जिसके पास हम बार-बार जाना चाहते हैं, जाते हैं।

घर बदलते हुए सबसे पहले इन apps में से नए 'home' को अपडेट करना होगा। एक नए जगह को समझना होगा, और फिर उस नए जगह से लगाव हो जाएगा। इस घर को भूल जाऊंगा, जैसे पिछले घरों को भूलता आया हूँ।

हर घर के साथ एक संबंध बना होता है। यहीं पर बेतकल्लुफ होकर सोया। घंटों सोया। रातों जगा। और जिया। बम्बई को जिया। यहाँ की 21वीं फ्लोर की बालकनी से बम्बई बहुत सुंदर दिखती है। बम्बई की monsoon के मज़े यहीं से मिलते थे।

एक घर से निकलना एक रिश्ते से निकलने जैसा है।

22.9.2019
__________

End Note 6


अंत कैसा होता होगा की कल्पना में मैंने कितना वक़्त गँवाया है!

मेरे खिड़की पर कुछ पंछी आते हैं। सिर्फ उदास दिनों में इनकी आवाज़ ध्यान से सुनता हूँ। खुशी के दिन अपने साथ इतना कुछ लाते हैं कि उनमें ही फँस जाता हूँ। अंत के समय कोई एक आवाज़ होगी जो मैं अंतिम बार सुनूँगा। मैं ऐसी कामना करता हूँ कि वो आवाज़ या तो तुम्हारी हो या एक पक्षी की। पक्षियों की आवाज़ में संगीत है।

और तुम्हारी आवाज़ मेरे लिए संगीत।

समय के साथ हमारी आवाज़ थोड़ी-थोड़ी तो बदल जाती होगी, जैसे हमारी शक्ल बदल रही होती है। अंत के दिनों में तुम्हारी शक्ल पहचानना मुश्किल होगा। इसलिए मैं लगभग रोज़ एक बार हमारे अंतिम संवाद को याद करता हूँ। मैं मन में उन शब्दों को दोहराता हूँ, कि अंत में तुम्हें तुम्हारी आवाज़ से पहचान लूँ।

लेकिन हमारे अंतिम संवाद सुखद नहीं थे। सुखद होते तो वो अंतिम नहीं होते। और दुख के संवाद को याद कर के मैं फिर से दुखी हो जाता हूँ।

खैर, ये सोच कर कि कभी ऐसा दिन आएगा जब मैं एक पक्षी की आवाज़ अंतिम बार सुनूँगा, मैं दुखी हो जाता हूँ। इसलिए पक्षियों की आवाज़ बार-बार सुनता हूँ, एकांत में। अंतिम दिन अगर कोई पक्षी नहीं आये तो मैं मन में उनकी आवाज़ दोहरा लूँगा, जैसे तुम्हारे शब्द दोहराता हूँ।

पक्षियों से कोई बैर नहीं, ना पक्षियों को मुझसे बैर है। इसलिए उनकी आवाज़ हमेशा सुखद रहेगी।

30.11.2019
__________

End Notes 7
मैं अंत पर खड़े सभी किरदारों को देखता हूँ - स्कूल का दोस्त, दादी, चाचा... चाची। अंत पर खड़े लोगों में उदासी दिखती है। ठीक अंत पर कोई खुश नहीं दिखता। ठीक अंत पर एक समुद्र दिखता है, अंतहीन। अगर खराब कविता लिखता तो इस समुद्र को 'आंसुओं का समुद्र' लिखता। लेकिन हम इतने आँसू कहाँ बहाते हैं कि समुद्र भर दें। 

ठीक अंत पर खड़े दोस्त से बात करना चाहता हूँ।

अमित मेरा दोस्त था। उसने आत्महत्या की, बहुत छोटी बात पर। मैं क्लास 7 में था। अमित 8वीं में। उसके मरने की खबर सुनकर मैं रोया, लेकिन मुझे लगा कि मैं बड़ा हो गया हूँ। दोस्त ने आत्महत्या कर ली है। ये खबर आपको कहीं से भी बच्चा बने नहीं रहने दे सकती। कुछ दिन या महीने में ये बात भूल गया।

पिछले कुछ दिनों से अमित याद आता है कभी कभी। मैंने अचानक से बहुत दोस्तों से उसके बारे में बात की है। मैं उससे भी बात करना चाहता हूँ। शायद बात कर के समझा भी लूँ कि इतनी जल्दी आत्महत्या करना ठीक नहीं है। अभी तो हमने कुछ झेला भी नहीं है। ज़िन्दगी बहुत लंबी है। बहुत कुछ देखना है। और उसके बाद अगर मन करे तो आत्महत्या कर सकते हैं। लेकिन इतनी जल्दी नहीं दोस्त।

ये सब बनावटी बात है। मैं नहीं जानता अमित क्या महसूस कर रहा था। बस एक सेकंड लगा होगा, और पिताजी के सर्विस रिवाल्वर ने अपना काम कर दिया होगा।

उसके पास किसी को होना चाहिए था। कोई दोस्त। बच्चा था। किसी 8वीं के बच्चे को देखता हूँ तो लगता है हम क्या कर रहे थे 8वीं में! लेकिन इन बच्चों के जीवन में भी क्या चल रहा है, हमें कहाँ पता है।

एक प्रिय कवि को खोना दुख देता है। एक प्रिय कविता को खोना भी दुख देता है। दोस्त को खोना एक कविता को खोने जैसा है।

18.1.20 


No comments:

Post a Comment