Thursday 1 November 2012

किरदार


वो कॉलेज में पढ़ता है| उसे नाटक खेलना अच्छा लगता है| कॉलेज के सभी दोस्त उसे नाटकवाला या ड्रामेबाज़ कह कर बुलाते हैं| ऐसा नहीं है कि वो सिर्फ नाटक ही खेलता है| उसे सबसे अच्छा काम गाना लिखना लगता है| लेकिन अभी तक उसने कोई गाना लिखा नहीं है| लिखा है, लेकिन सिर्फ एक- जो किसी ने गाया नहीं है| उसे मालूम है कि वो गाना लिखेगा| तब तक वो नाटक खेलना चाहता है| 

वो फिलहाल कॉलेज के ड्रामा सोसाइटी का प्रेसिडेंट है| इसके मुताबित वो अपने कॉलेज का सबसे अच्छा एक्टर है| कॉलेज में कुछ ढाई हज़ार स्टुडेंट्स पढ़ते हैं| उन सब में वो सबसे अच्छा है- ऐसी गलतफहमी उसे नहीं है| उसे मालूम है कि वो सिर्फ एक तरह का अभिनय कर सकता है| वो मंच पर सिर्फ ऐसे किरदार निभा सकता है जो वो असल जिंदगी में निभा रहा है| वो मंच पर बहुत तेज़ हँस नहीं सकता| वो किसी के भी सामने बहुत तेज़ हँसते वक्त असहज हो जाता है| ऐसा नहीं है कि वो बहुत तेज़ हँसना नहीं चाहता| वो चाहता है| जब वो अपने घर में अकेला रहता है तो बहुत ज़ोर से हँसने की कोशिश भी करता है, लेकिन फिर भी नहीं हँस पाता| फिर वो अपने आपको आईने में देखता है, और रोने की कोशिश भी करता है| वो बहुत अच्छा रो भी नहीं पाता| लेकिन नकली हँसी से बेहतर नकली रो लेता है| उसके रोने और हँसने के बीच बहुत अंतर नहीं होता क्योंकि वो दोनों नकली हैं| इसलिए वो अपने आपको बहुत अच्छा अभिनेता नहीं मानता| 

उसके दोस्त उसे अच्छा एक्टर मानते हैं| उनलोगों ने कभी भी नाटक नहीं देखा| दूसरे का भी नहीं देखा, और इसका भी नहीं देखा| लेकिन उन्हें लगता है कि ये अच्छा एक्टर है क्योंकि ये दिन भर कॉलेज में एक्टिंग करता है; अपने जूनियर्स को एक्टिंग सिखाता है; सीरियस रहता है| हमेशा सीरियस नहीं रहता- मज़ाक भी करता है| लेकिन उसके मज़ाक का कोई मतलब नहीं होता| उसके जोक्स पर ज़्यादा लोग हँसते नहीं हैं| जब भी वो कोई जोक सुनाता है तो सोचता है कि लोग कैसे हँसेंगे; कब हँसेंगे? वो लोगों को हँसाना चाहता है, क्योंकि वो भी दूसरों के जोक्स पर हँसता है| लेकिन जब कोई नहीं हँसता तो उसे लगता है कि उसपर उधार चढ़ गया| उसे उधार चुकाने की जल्दी है| इसलिए उसके जोक्स बहुत सीरियस किस्म के होते हैं- वो कई तरह के इमोसंस को मिक्स कर देता है अपने जोक्स में| हर मर्तबा जब वो जोक सुना चुका होता है तो शर्मिंदा हो जाता है| 

उसे मालूम है कि कॉलेज का ड्रामा प्रेसिडेंट बनना कोई बड़ी बात नहीं थी| उससे अच्छे एक्टर भी ड्रामा टीम में थे| उसे सिर्फ इसलिए ड्रामा प्रेसिडेंट बनाया गया क्योंकि वो रेस्पोंसिबिलिटी लेना चाहता है| उसने एक फ्रेंच नाटक का हिंदी रूपांतरण भी खोजा, जिसे उसने अडाप्ट किया| एक महीने तक वो नाटक अडाप्ट करता रहा| उसने फ्रेंच नाटक को पश्चिम दिल्ली के एक परिवार से मिला दिया| उसे किरदारों को जन्म देना अच्छा लगता है| किरदारों से खेलते वक्त वो अपने आपको बहुत बड़ा महसूस करता है| उसे मालूम है कि वो अच्छा नाटक लिख सकता है| कहानी भी अच्छी लिख सकता है| लेकिन उसे लगता है कि अच्छी कहानी आने में कुछ दिन और लगेंगे| अच्छी कहानी लिखने के लिए उसे अच्छी कहानियाँ पढ़नी होंगी| वो हर वक्त पढ़ने की कोशिश करता रहता है| 

वो अपना नाटक (जो की उसका नहीं है क्योंकि उसने बस अडाप्ट किया है) लेकर ड्रामा टीम के पास जाता है| सभी मिलकर नाटक पढ़ते हैं| जब तक रीडिंग चल रही होती है उसे डर लगता रहता है कि लोग उसके नाटक को नकार देंगे| लेकिन वो उसका नाटक नहीं है- फिर भी उस नाटक के साथ उसका एक रिश्ता बन चुका है| उसके किरदार उसने जन्मे हैं; वो फ्रेंच नहीं हैं| वो बिल्कुल वैसे ही हैं जैसा उसने दिल्ली में रहते हुए देखा है| वो डी.टी.सी बस में सफ़र करने वाले किरदार हैं| वो भिन्डी और टिंडे की सब्जी पसंद करते हैं| उनका पेरिस के किसी भी मोहल्ले से कोई रिश्ता नहीं है| वो अपने किरदारों को लेकर पोसेसिव है| अगर उसके ड्रामा टीम वालों ने उन किरदारों को नहीं पहचाना तो क्या होगा? 

लेकिन उसके ड्रामा टीम वाले उन किरदारों को पहचान लेते हैं| अब सभी मिलकर कहानी डिस्कस कर रहे हैं| कहानी से उसका बहुत वास्ता नहीं है| हर किरदार के पास हज़ारों कहानियाँ होती हैं| ये कहानी किसी और की है| अब उसे डर नहीं लगता| लेकिन हर किसी को कहानी अच्छी लगती है, किरदार भी अच्छे लगते हैं| अब ये नाटक साल भर खेला जाएगा; विश्वविद्यालय के हर ड्रामा कोम्पेटिशन में जाएगा| उसके किरदार अभी कुछ दिन जिंदा रहेंगे| वो खुश है| लेकिन बहुत खुश भी नहीं है| क्योंकि उसके किरदार अब उसके नहीं रहेंगे| ड्रामा टीम वाले मिलकर सभी किरदारों को ‘निभाएंगे’| 

वो घर लौट रहा है| आज का दिन अच्छा गुज़रा| घर पर कोई नहीं है| वो शहर में अकेले रहता है| उसे नहीं मालूम घर पर क्या करना है| वो घर पहुँचता है| उसे अकेलापन महसूस होता है| उसे आज कुछ काम नहीं है| वो घर से बाहर निकलता है| वो बगल के एक पार्क में जाकर बैठता है| वो इस पार्क में कभी-कभार ही आता है| उसे पार्क में आना बहुत अच्छा नहीं लगता| पार्क में आने से ठीक पहले उसे अच्छा लगता है कि वो पार्क में जा रहा है, लेकिन पार्क में जाते ही उसे पार्क से बाहर निकलने का मन करता है| ऐसा उसके साथ हमेशा होता है- घर, कॉलेज, ड्रामा रिहर्सल, सिनेमा- वो कहीं भी जाने के बाद वहाँ रहना नहीं चाहता| फिर भी कुछ देर रहता है| 

अब शाम हो चुकी है| 

उसका कोई दोस्त ऐसा नहीं है जो उसे शाम के वक्त मिले| उसे नहीं पता आज वो क्या करेगा| अब वो नाटक भी अडाप्ट नहीं कर रहा| उसके पास कोई किरदार नहीं हैं खेलने के लिए| वो यही सोच रहा है| 

अचानक उसका रायटर अपनी कॉपी बंद करता है| वो वहीँ पार्क के बेंच पर बैठा रह जाता है|



30.10.12