[एक नॉन-महान इंसान की शॉर्ट फ़िल्म जैसा कुछ, क्योंकि फ़ीचर फ़िल्म महान लोगों के लिए आरक्षित है।]
वो धीरे-धीरे चल रहा था और चलते-चलते सोच रहा था कि आज का कितना काम बाक़ी रह गया। आज वो एक महान इंसान से मिल कर लौट रहा था।
महान इंसान ने खाना खिलाते हुए समझाया था कि महानता का दुःख कोई और नहीं समझ सकता। महान इंसान लगातार पृथ्वी को उसकी धूरी पर घूमाता है। कभी-कभी जब सूरज के पास रोशनी कम हो जाती है तो उसको एक दिन की रोशनी उधार भी देता है। नॉन-महान इंसान ये सब सुनता और हाँ में हाँ मिलाता - जैसे महान इंसान के आसपास के लोग मिलाते। महान इंसान कुछ देर के लिए अपने मोहल्ले का भगवान बन जाता। नॉन-महान लोगों को लगता कि वो भी कुछ देर के लिए ख़ास आदमी हो गए हैं।
महान आदमी की महानता का बोझ इतना होता कि एक समाज का कंधा हमेशा दर्द में रहता। महानता का बोझ नॉन-महान लोगों को उठाना पड़ता है। नॉन-महान लोग अद्भुत होते हैं। इनका कंधा हमेशा थोड़े दर्द में होता फिर भी एक नए आदमी को महान बना देते।
महानता के बोझ तले दबे इस इंसान को अब लगने लगा था कि किसी और के महान बनने में इसका कोई फ़ायदा नहीं। नॉन-महान इंसान अचानक से अपने पास का बिखरा हुआ संसार देखने लगा था। उसने पाया वो लगतार बीत रहा था। उसके बीतने में किसी की महानता कम नहीं हो रही थी।
उसने डिसाइड किया कि अब वो महान इंसान से नहीं मिलेगा। महान इंसान को इसकी भनक लग गयी। वो खुद नॉन-महान इंसान से मिलने आया। और उसने पेप्सी आगे बढ़ाया। महान इंसान को पता था कि नॉन-महान इंसान हमेशा पेप्सी के लालच में आ जाता है। महान इंसान के दिए पेप्सी में 5.28 मिलीग्राम अफ़ीम होता है। सरकार इसकी परमिशन भी देती है। ये बिलकुल लीगल है। इलेक्शन के समय इसकी मात्रा 5.28 मिलीग्राम से 10.12 मिलीग्राम तक बढ़ाने का प्रावधान भी है। सरकार और महान इंसान के बीच के इस नेक्सस को समझने वालों की संख्या लगातार कम होती जा रही थी।
इस नॉन-महान इंसान ने पेप्सी पीने से इनकार कर दिया। कई सालों बाद महान इंसान को किसी ने ना कहा था। महान इंसान ये सह नहीं पाया। उसने सरकार को फ़ोन किया। सरकार महान इंसान के दर्द को समझ गयी। महान इंसान और सरकार ने मिलकर एक इलाज निकाला। उन्होंने नॉन-महान इंसान के घर पानी की जगह अफ़ीम वाली पेप्सी भेजने का इरादा किया।
अब नॉन-महान इंसान कोई भी नल चलाता तो पेप्सी निकलती। वो समझ गया। उसने ठान लिया कि अब कुछ भी हो जाए वो इस लालच में नहीं फँसेगा।
महान इंसान की महानता को चैलेंज मिल रहा था। आसपास के बाक़ी नॉन-महान लोगों को सब धुंधला-धुंधला दिखता। वो भी पीठ पीछे आपस में डिस्कस कर रहे थे। महान इंसान को सब समझ में आ रहा था। नॉन-महान इंसानों को वो लगातार पेप्सी पिला रहा था। पेप्सी पीते ही वो सब चुप हो जाते और महान इंसान के चुटकुले पर हँसते।
लेकिन जिसने पेप्सी पीने से मना कर दिया था वो अब प्यास से मरता जा रहा था। सरकार ने उसकी पानी का सप्लाई बिल्कुल रोक दिया। वो दर-दर भटकता लेकिन कोई पानी नहीं देता। उसने देखा कि असल में पूरा शहर सिर्फ़ पेप्सी पीता है। अब लोग पेप्सी से नहाने भी लगे हैं। लोगों के शरीर पर चींटी रेंग रही है - किसी को कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ रहा।
एक दिन आया जब प्यास से पागल इस नॉन-महान इंसान के सामने महान इंसान 1.5 लीटर की पेप्सी की बोतल लेकर आया। अपने पागलपन में नॉन-महान इंसान को सब साफ़-साफ़ दिखने लगा था।
महान इंसान ने बोला, “ज़िंदा रहना है तो पेप्सी पीनी ही पड़ेगी।”
नॉन-महान इंसान ने जवाब दिया, “अब मुझे सब साफ़ दिख रहा है। तुम्हारे महानता के बोझ से मेरा कंधा टूट गया है। मैं मर जाऊँगा लेकिन पेप्सी नहीं पियूँगा।”
महान इंसान ने हंसते हुए एक गिलास पानी पिया। वो पेप्सी कभी नहीं पीता था। नॉन-महान इंसान मुस्कुराते हुए वहीं मर गया। बहुत सारे नॉन-महान इंसान एकत्रित हुए। महान इंसान सबको रोता हुआ दिखा।
महान इंसान ने बोला, “ये कोई आम आदमी नहीं था। ये बहुत महान इंसान था।”
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