सुबह का समय है।
रोहन कल रात जब सोया तो उसने सोचा कि 'नींद कैसे आती है' को देखेगा। नींद को आते देखना उसका सबसे बड़ा एडवेंचर था। रोज़ कोशिश करता कि आज देख ही लेगा नींद कैसे आती है। रोहन के लिए ये एक बड़ा सवाल था। उसने बहुत लोगों से पूछा भी, जवाब कोई ठीक से नहीं दे रहा था।
“मम्मी, नींद कैसे आ जाती है?”
“जब हम सोने जाते हैं तो आ जाती है।”
“वो तो हमको भी पता है। लेकिन आती कैसे है? पैदल, या कार में? या दादाजी की तरह ट्रेन में?”
रोहन के इस मासूम सवाल को सुन कर माँ को हँसी आ गयी। अब इस बात का जवाब कोई कैसे दे कि नींद का mode of travel क्या है! लेकिन सवाल अपनी जगह सही भी है - अगर कोई कहीं आता है तो किसी तरह से तो आता होगा। नींद भी आती है, और रोहन को बहुत नींद आती है। वो बस उसे पकड़ना चाहता था कि बैठ कर उसे समझा दे कि ‘देखो नींद, रात में ही आया करो। दिन में मत आओ। स्कूल में तो बिलकुल ही मत आओ। इंग्लिश मैडम बहुत ग़ुस्सा करती हैं। शाम में भी मत आया करो। दोस्तों के साथ खेलने का समय होता है। तुम तो बस रात में आया करो।’ लेकिन नींद शैतान मिले तब तो! वो चुपके से आती और रोहन को चुपके से सुला कर भाग जाती।
सुबह हुयी तो फिर वही अफसोस 'अरे, आज फिर नींद को आते नहीं देख पाए।' और इसी अफसोस के साथ वो स्कूल जा रहा था।
रोहन की उम्र आठ साल है। उसके मोटे-मोटे संतरे जैसे गाल हैं। लोग बिना permission उसके गाल पकड़ लेते। रोहन को ये बिलकुल पसंद नहीं। गाल उसके अपने हैं। कोई और क्यों पकड़ेगा? और पकड़ कर अजीब तरह से खींच लेता है बोलते हुए कि ‘अरे रोहन तुमरा गाल तो संतरे की तरह है!’ ये कुछ चीजें हैं जो रोहन बहुत seriously सोचता है। वो लोगों को इन बातों पर जज भी करता है कि कौन कितना अच्छा दोस्त बन सकता है। अच्छी बात ये कि उसकी क्लास में कोई भी ऐसी हरकत नहीं करता। ये बस बड़े लोग करते हैं।
“बैग में टिफ़िन रख दिया है। खा लेना। बिना खाये टिफ़िन लेकर वापस मत आ जाना।” स्कूल बस के रास्ते में माँ रोहन से बातें कर रही थी।
"तुम भिंडी मत दिया करो टिफिन में। वो तो घर पे खाने का होता है। स्कूल के लिए कुछ अच्छा देना होता है।" रोहन बोरिंग खाने से परेशान रहता था। बहुत दिन से सोच रहा था कि माँ को साफ साफ बता देना ही ठीक है। आज उसने बोल दिया।
"आज सिर्फ फ्रूट्स दिए हैं। संतरा और सेब। खा लेना। चलो बस आ गयी है। जल्दी से पकड़ लो।"
रोहन पटना में रहता है। उसका स्कूल उसके घर से बहुत दूर नहीं है। लेकिन रोहन को ऐसा लगता है कि बहुत दूर है। उसकी छोटी-छोटी आंखों में सब बड़ा दिखता है। ये तो अच्छा है कि बस में अंकित भी होता है। तो रास्ता जल्दी कट जाता है।
"रोहन! रोहन!" अंकित पीछे वाली सीट पर रोहन का इंतज़ार कर रहा था। स्कूल बस में पीछे की सीट बड़े क्लास के स्टूडेंट्स के लिए रिज़र्व रहती थी। लेकिन आज अंकित वहाँ पहले से बैठा था।
"आज पीछे का सीट कैसे मिल गया?" रोहन बहुत खुशी में पीछे पहुँच कर पूछा।
"पता नहीं यार। आज तो कोई आया ही नहीं। हम देखे खाली है तो जल्दी से आ गए और तुम्हारे लिए भी सीट रिज़र्व कर लिए।" अंकित ने पूरी बात को समझाया।
"पीछे से तो सब बिल्कुल अलग जैसा दिखता है। ड्राइवर अंकल और दूर चले गए…"
"बाहर देखो। ये वाला खिड़की बड़ा है। सर भी बाहर जा सकता है…" अंकित ने सर को बाहर निकालते हुए कहा।
रोहन थोड़ा डर गया। "सर बाहर मत निकालो अंकित, प्लीज।"
अंकित बाहर हवा से बातें करने लगा। अंकित कभी भी कहीं भी किसी से भी बात कर लेता था। वो सबका दोस्त था। हवा के साथ भी दोस्ती कर ली। "हवा हवा… तुम किधर जाती है?"
"मैं तो हवा हूँ ना अंकित। मैं सब जगह जाती हूँ।"
"तुमको कहीं जाने के लिए बस नहीं लेना होता?"
"नहीं। मैं तो उड़ के चली जाती हूँ। तुम भी चाहो तो उड़ सकते हो।"
"रोहन, तुमको पता है हम भी चाहें तो उड़ सकते हैं!" अंकित ने सर को अंदर लाते हुए कहा।
"कहाँ उड़ सकते हैं?" रोहन को समझ नहीं आया।
"अभी हवा हमको बतायी कि अगर हम चाहें तो उड़ सकते हैं जैसे हवा उड़ती है।"
"तुम हवा से भी बात कर सकते हो?" रोहन ने पहले भी अंकित को सबसे बात करते हुए देखा था। कभी पेन से, कभी पेपर से। एक बार अंकित टिफिन बॉक्स से भी बात कर रहा था। और उसने टिफिन बॉक्स को बोला, "कुछ अच्छा खाना खिला दे यार टिफिन!", और टिफिन बॉक्स से पिज़्ज़ा निकला था। उस दिन से रोहन ने मान लिया था कि अंकित किसी से भी बात कर सकता है। लेकिन अंकित को हवा से बात करते हुए पहली बार देख रहा था।
"हाँ। हम हवा से भी बात कर लेते हैं। हवा ने बोला है कि अगर हमारा मूड करे तो हम उड़ सकते हैं। ये तो अच्छा बात पता चल गया। बहुत दिन से सोच रहे थे कि उड़ने का कैसे प्लानिंग करना होगा। जल्दी मूड बना कर उड़ना चाहिए।" अंकित को नया काम मिल गया था।
"हमारा मूड नहीं है। बाद में उड़ेंगे।" रोहन उड़ने से डर रहा था। उसने अब तक उड़ने का सपना भी नहीं देखा था। रोहन कुछ भी करने से पहले उसका सपना देखता है। फिर उसे कर लेता है। इसलिए नींद उसे बहुत पसंद भी है।
रोहन और अंकित स्कूल पहुँच गए। अंकित सबका फेवरेट है लेकिन ये बात कि वो किसी से भी बात कर सकता है बस रोहन को पता है। क्लास में भी अंकित रोहन के साथ ही बैठता है। रोहन अंकित को किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहता।
"अंकित, क्या हम तुम्हारे पास बैठ जायें?" श्रेया ने एक दिन अंकित से पूछा। अंकित ने रोहन को बताया कि श्रेया उसके पास बैठना चाहती है। रोहन ने कुछ नहीं कहा। लेकिन वो ये बात सह नहीं पाया।
"अगर श्रेया तुम्हारे पास बैठेगी तो उसको तुम्हारे सुपरपावर के बारे में पता चल जाएगा। फिर वो सबको बता देगी। हमको कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन तुम देख लो…" रोहन ने अपने तरफ से पूरी कोशिश की कि श्रेया अंकित के पास ना बैठे।
"श्रेया को पता चल जाएगा तो कोई बात नहीं। हम उसको बता देंगे। वो अच्छी है। किसी को नहीं बताएगी।" अंकित को बहुत क्लैरिटी थी। रोहन के लिए ये सबसे दुखद दिन था। पहली बार अंकित और रोहन के बीच कोई और आ गया था। रोहन उठ कर किसी और सीट पर बैठ गया। टिफिन ब्रेक में दूर से उसने देखा तो अंकित और श्रेया पिज़्ज़ा खा रहे थे। ये देखते ही रोहन रो पड़ा।
उसके तीन दिन बाद तक रोहन को बुखार था।
फिर बुखार ठीक हो गया। और उसने मान लिया कि क्लास में भले ही अंकित श्रेया के साथ बैठता है लेकिन बस में उसके लिए सीट रिज़र्व कर के रखता है।
अब टिफिन के समय अंकित, रोहन और श्रेया साथ ही खाना भी खाते हैं।
"आज क्या लाये हो टिफिन में रोहन?" श्रेया ने पूछा।
"आज फ्रूट्स लाये हैं। संतरा और सेब। तुमलोग भी खाओ।" रोहन हमेशा खाना शेयर करता है।
"संतरा हमारा फेवरेट है!" अंकित बहुत खुश हो गया।
"सच में?" रोहन को ये बात पता ही नहीं थी। उसे हर दिन कुछ नया पता चलता था अंकित के बारे में।
"हाँ, अंकित का फेवरेट तो संतरा ही है।" श्रेया टिफिन से संतरा उठाते हुए बोली। रोहन थोड़ा दुःखी हुआ कि श्रेया को ये बात पहले से पता थी।
"हमारा फेवरेट सेब भी है। ये बस रोहन को पता है।" अंकित ने ये बात रोहन को देखते हुए बोला। "पहले तो हमलोग बहुत सेब खाते थे जब भी रोहन टिफिन में लाता था।"
रोहन के चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी। उसे याद आया कि जब वो अंकित के साथ बैठा होता तो वो बहुत हँसता भी था।
"तुमलोग एक बात जानते हो, हमलोग जो भी फ्रूट खाते हैं अगर गलती से उसका बीज खा लोगे तो उसका पेड़ हमारे पेट में उग जाता है।" अंकित ने संतरे का बीज निकालते हुए बोला।
"सच में?" श्रेया को विश्वास ही नहीं हुआ।
"हाँ। ऐसा ही तो होता है। सब जानते हैं। तुमको नहीं पता?" अंकित के लिए ये बहुत आम बात थी।
"नहीं। हम तो ऐसा नहीं सुने। कोई नहीं बोला।" रोहन को भी यकीन नहीं हो रहा था।
"अरे, सबको पता है। इसलिए हमलोग बीज नहीं खाते। फेंक देना होता है। नहीं तो पेड़ निकल जाएगा।"
रोहन संतरा खा रहा था। ये सुनते सुनते उनके मुँह में बीज आ गया। वो समझ नहीं पा रहा था कि अब इस बीज का क्या करना है। वो हमेशा बीज फेंक देता है, लेकिन अभी पहली बार उसको ये बात पता चली है। रोहन ने सारे बीज मुँह से निकाले और फेंक दिए।
लेकिन एक बीज मुँह में ही रखा। वो चाह कर भी नहीं फेंक पाया।
पूरे दिन, सारे क्लास में वो बीज उसके मुँह में ही था। रोहन थोड़ा डर भी रहा था। लेकिन ये सोचना भर उसे बहुत रोमांच दे रहा था कि ये संभावना भी है कि उसके पेट में संतरे का पेड़ उग सकता है।
अचानक गलती से उसने वो बीज निगल लिया।
बीज निगलते ही रोहन के दिल की धड़कन बढ़ गयी। वो डर गया। उसको ऐसा लगा कि उसके पेट में कुछ तो हुआ है। लेकिन क्या, वो नहीं जानता था।
"क्या हो गया तुमको? तुम्हारा तबियत ठीक नहीं लग रहा है?" छुट्टी के समय अंकित ने रोहन से पूछा।
रोहन ने सोचा कि अंकित को सच बता दे कि उसने बीज खा लिया है। ये बताने से उसके पेट का दर्द ठीक हो जाएगा। लेकिन वो बोल नहीं पाया। "बस थोड़ा सा पेट दर्द हो रहा है। ऐसे ही। ज़्यादा नहीं। अभी ठीक हो जाएगा।"
"कुछ ज़्यादा दर्द हो तो बताओ। हम तुम्हारे पेट से बात कर लेते हैं?" अंकित पेट से बात करके पेट को बोल सकता था कि 'पेट, दर्द मत करो।' और पेट ये बात मान भी जाता।
"नहीं। पेट से बात मत करो। पेट थोड़ा रेस्ट कर रहा है।" रोहन फिर से डर गया। वो नहीं चाहता था कि अंकित को पता चल जाये कि रोहन के पेट में बीज है। पेट तो सब सच बता देगा। और अंकित ने मना भी किया था कि बीज नहीं खाना चाहिए।
रोहन घर पहुँचा। उसके पेट का दर्द बढ़ता जा रहा था। लेकिन उसने किसी को कुछ नहीं बताया। उसने धीरे से अपने पेट से बोला "पेट, दर्द मत करो।"
लेकिन पेट की भाषा तो बस अंकित को पता थी। रोहन की बात पेट क्यों मान लेता।
शाम में रोहन ने अपनी माँ से बात करने की कोशिश की। "मम्मी, संतरा खाने से पेट में संतरे का पेड़ उग जाता है?"
माँ ने हंसी में कह दिया "हाँ, उग तो जाता है लेकिन अगर संतरे का बीज खाओगे तो। सिर्फ़ संतरा खाने से कुछ नहीं होता।'
रोहन सन्न रह गया। उससे गलती हो गयी थी। उसको बीज नहीं निगलना चाहिए था।
रात में रोहन को एक सपना आया। उसने सपने में देखा कि उसके हाथ पर एक पत्ता उग आया है। ध्यान से देखा तो उसके मुँह से एक टहनी निकल रही थी। एक और टहनी। फिर कहीं कुछ और पत्ते। और सबसे अंत में उसने देखा कि एक टहनी पर एक संतरा उग आया है।
रोहन संतरे का पेड़ बन चुका था।
नींद खुली तो वो अपने बिस्तर पर ही था। "बस सपना ही था!" रोहन खुश हुआ कि वो अब भी रोहन है।
लेकिन…
रोहन की नज़र उसकी कोहनी पर गयी। वहाँ एक छोटा सा पत्ता उग आया था। रोहन डर गया।
रोहन ने सारा काम जल्दबाज़ी में निपटाया। माँ से पहले ही घर से निकल गया। माँ पीछे। रोहन आगे। स्कूल बस के आने से पहले ही स्कूल बस में चढ़ने की तैयारी करने लगा। माँ को भी समझ नहीं आया कि बात क्या है।
"अंकित, पता है…" स्कूल बस में चढ़ते ही रोहन ने अंकित से बात करनी चाही।
"रुको, एक चीज़ दिखायें तुमको?" अंकित ने एक कॉपी निकाल रखी थी। "हम बहुत दिन से कोशिश कर रहे थे। अपने कॉपी में मोर पंख रखे थे। उसको चॉक खिलाये। आज सुबह मोर पंख डबल हो गया!"
रोहन सबकुछ भूल कर मोर पंख को देखने लगा। "ये तो बहुत सुंदर है!"
"हाँ। अब हम इसको दो का चार कर देंगे। फिर तुमको गिफ्ट करेंगे।"
रोहन अंदर ही अंदर रोने लगा। अब वो अंकित से गिफ्ट नहीं ले पायेगा। पेड़ बन कर तो बस किसी एक जगह खड़ा रहना होगा। पेड़ तो चल नहीं सकते।
"अंकित, अगर कोई पेड़ बन जाये तो क्या करना चाहिए?" रोहन ने उदास चेहरे से अंकित से सवाल किया।
"पेड़ तो बहुत मुश्किल से बनते हैं। उतना आसान नहीं है। हम भी कभी कभी कोशिश करते हैं। किसी को बताना मत। श्रेया को भी नहीं…" अंकित ने रोहन को करीब लाकर एक ज़रूरी बात बतायी। "हम संतरा का बीज खा लेते हैं कभी कभी। सोचो, अगर संतरा का पेड़ बन गए तो कितना अच्छा हो जाएगा। कभी संतरा खरीदना नहीं पड़ेगा। जब मन करेगा खा लेंगे। और सबसे ज़रूरी बात पता है?"
"क्या?"
"पेड़ बन कर बाकी लोग को ऑक्सीजन दे सकते हैं।" अंकित के चेहरे पे एक चमक आ गयी।
रोहन पूरे दिन सोचता रहा कि क्या करे। अंकित चाह कर भी पेड़ नहीं बन पा रहा। और रोहन धीरे धीरे पेड़ बनता जा रहा है। उसने देखा अब उसके हाथ और पैर पर पत्ते उग चुके थे। उसने महसूस किया कि उसके मुँह से एक टहनी निकल रही है। कल रात जो उसने सपना देखा था, आज वो सच होने लगा था।
अब रोहन को समझ आ गया कि क्या करना है।
स्कूल की छुट्टी के बाद रोहन अकेले स्कूल से बस थोड़ी दूर एक सुनसान जगह जाकर खड़ा हो गया। उसने अंकित को अलविदा भी नहीं बोला। वो जानता था कि अंकित उसको ऐसे जाने नहीं देगा। और ये भी जानता था कि अंकित तो जब चाहे उससे बात कर लेगा। अंकित तो पेड़ों से भी बात कर लेता है।
रोहन उस जगह खड़े होकर संतरे का पेड़ बन गया। अब वो ऑक्सीजन लेता नहीं, पूरी दुनिया को ऑक्सीजन देने लगा।
लेकिन, बहुत देर इंतज़ार के बाद भी अंकित नहीं आया। रोहन अब वहाँ से हिल नहीं सकता था। उसके पैर से जड़ें निकल कर ज़मीन में जा चुकी थीं। वो अब जीवन भर वहीं खड़ा रहने वाला था।
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पंद्रह साल बाद।
अंकित अब कॉलेज जा चुका है। स्कूल खत्म हुए काफी समय बीत गया है। एक दिन अंकित ऐसे ही स्कूल घूमने आया है। वही इमारत। पुरानी यादें। पुराने दोस्त।
पूरे दिन स्कूल के अंदर घूमने के बाद, अंकित यूँ ही सड़क पर चलने लगा। श्रेया भी उसके साथ ही है। पैदल चलते हुए वो दोनों एक सुनसान जगह पहुँचे। अंकित अपने स्कूल के असपास सबकुछ इत्मीनान से देखना चाहता है।
"अरे, ये कितना सुंदर पेड़ है!" अंकित ने श्रेया को बोला।
"हाँ। हमलोग ने ये कभी देखा क्यों नहीं?" श्रेया भी इस पेड़ को नहीं पहचानती थी। ये बिल्कुल ऐसा है जैसे वो कुछ नया डिस्कवर कर रहे हों।
"हम इस तरफ़ नहीं आया करते थे, इसलिए।" अंकित पेड़ के करीब जाते हुए बोल रहा है।
तभी अचानक तेज़ हवा चली।
"आंधी जैसा आने वाला है। अजीब हवा है यार। अचानक से मौसम बदल गया।" अंकित के लिए अब हवा सिर्फ हवा या तेज़ हवा है। कुछ और नहीं।
"जल्दी चलो।" श्रेया ने अंकित को बोला।
और पता नहीं कैसे, कुछ संतरे ज़मीन पर गिर गए।
"अरे, तुम्हारे फेवरेट संतरे!" श्रेया हंसने लगी। अंकित को समझ नहीं आया कि ये संतरे अचानक कैसे गिर गए। उसने पेड़ को देखा। बहुत ध्यान से देखा। फिर कुछ संतरे उठाये। मुस्कुराया। पेड़ को अंतिम बार देखा और लौट गया।